वास्ते हज़रत मुराद-ए- नेक नाम       इशक़ अपना दे मुझे रब्बुल इनाम      अपनी उलफ़त से अता कर सोज़ -ओ- साज़    अपने इरफ़ां के सिखा राज़ -ओ- नयाज़    फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हर घड़ी दरकार है फ़ज़ल-ए- रहमान फ़ज़ल तेरा हो तो बेड़ा पार है

 

 

हज़रत  मुहम्मद मुराद अली ख़ां रहमता अल्लाह अलैहि 

 

 हज़रत सय्यद मुहम्मद मारूफ़ मदनी शाह

 

रहमतुह अल्लाह अलैहि

 

हज़रत सय्यद मुहम्मद मारूफ़ मदनी शाह साहिब रहमतुह अल्लाह अलैहि की तारीख़ विलादत मालूम नहीं हो सकी आप रहमतुह अल्लाह अलैहि हज़रत मौलाना शाह फ़ज़ल रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुह अल्लाह अलैहि के ख़लीफ़ा थे ।आप के बैअत होने का वाक़िया कुछ इस तरह है।

जब हज़रत सय्यद मुहम्मद मारूफ़ मदनी रहमतुह अल्लाह अलैहि मक्का मुकर्रमा में थे तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने कई मर्तबा हज़रत मौलाना शाह फ़ज़ल रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुह अल्लाह अलैहि को ख़ाना काअबा में नमाज़ पढ़ते हुए देखते ।जब मिलने की नीयत से क़रीब जाते तो आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ग़ायब हो जाते। जिस के बाद आप रहमतुह अल्लाह अलैहि के दिल में हज़रत मौलाना शाह फ़ज़ल रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुह अल्लाह अलैहि के बारे में जानने की जुस्तजू पैदा हुई। बहुत दिनों के बाद किसी ने हज़रत सय्यद मुहम्मद मारूफ़ मदनी रहमतुह अल्लाह अलैहि को बताया कि अगर आप रहमतुह अल्लाह अलैहि ने उन से मिलना है तो गंज मुराद आबाद चले जाऐ जो उतर प्रदेश इंडिया में वाक़्य है तो हज़रत सय्यद मुहम्मद मारूफ़ मदनी रहमतुह अल्लाह अलैहि ने फ़ौरन गंज मुराद आबाद जाने का फ़ैसला कर लिया और इंडिया रवाना हो गए।

हज़रत सय्यद मुहम्मद मारूफ़ मदनी रहमतुह अल्लाह अलैहि गंज मुरादाबाद पहुंच कर हज़रत मौलाना शाह फ़ज़ल रहमान गंज मुरादाबादी रहमतुह अल्लाह अलैहि की ख़िदमत अक़्दस में हाज़िर हुए और शरफ़ बैअत हासिल की और बाद में सुलूक की मनाज़िल तै करते हुए आप के ख़लीफ़ा हुए।

आप २८ रजब १३१६हिज्री में अलवर राजिस्थान इंडिया के मुक़ाम पर इस दुनिया से रुख़स्त हुए। आप का मज़ार अलवर राजिस्थान इंडिया में है। आप के हज़ारों मुरीद थे और बहुत से लोग आप से अख़ज़ तरीक़ा करके बाख़ुदा होगए। ये अलफ़ाज़ मौलाना नवाब सय्यद नूर-उल-हसन की किताब मजमूआ अलर्साइल जो कि १८९७ ईसवी में शाय हुई इस से लिए गए हैं।

बावजूद जद्द-ओ-जहद के हज़रत सय्यद मुहम्मद मारूफ़ मदनी शाह साहिब रहमतुह अल्लाह अलैहि की तारीख़ पैदाइश और मज़ीद हालात मालूम नहीं हो सके। अगर किसी साहिब के पास इस बारे में कुछ मालूमात हूँ या मज़ार शरीफ़ की तसावीर मौजूद हूँ तो फ़ौरी तौर पर राक़िम से राबिता क़ायम कर के इस कार-ए-ख़ैर में हिस्सादार बने।

इसरार-उल-हक़

Israr Ul Haq

shaimaisrar@gmail.com

+923218457693